Roza Rakhne aur Kholne ki Niyat: रमज़ान के पाक महीने में रोज़ा रखना और खोलना एक महत्वपूर्ण इबादत मानी जाती है। इस दौरान न सिर्फ भूखा रहना जरूरी होता है, बल्कि नियत और दुआओं का भी खास महत्व होता है। अगर आपको रोज़ा रखने या खोलने की दुआ याद नहीं है, तो हम आपके लिए यहां ये महत्वपूर्ण दुआएं साझा कर रहे हैं।
रोज़ा रखने की नियत (Roza Rakhne ki Niyat)
इस्लाम में कोई भी इबादत नियत के बिना पूरी नहीं होती। रोज़ा रखने के लिए भी नियत करना आवश्यक है। अल्लाह रोज़ेदार की नियत को देखता है और उसी के आधार पर रोज़ा कबूल करता है।
दुआ | हिंदी में | इंग्लिश में | अर्थ |
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रोज़ा रखने की दुआ (Roza Rakhne ki Dua) | ‘व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान’ | ‘Wa bisawmi ghaddan nawaiytu min shahri ramadan’ | मैं रमज़ान के इस रोज़े की नियत करता/करती हूं। |
रोज़ा खोलने की नियत (Roza Kholne ki Niyat)
रोज़ा खोलते समय नियत करना और इफ्तार की दुआ पढ़ना आवश्यक होता है। यह दुआ रोज़ेदार को इफ्तार से पहले पढ़नी चाहिए ताकि रोज़ा कबूल हो और खाने में बरकत हो।
दुआ | हिंदी में | इंग्लिश में | अर्थ |
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रोज़ा खोलने की दुआ (Roza Kholne ki Dua) | ‘अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु, व-बिका आमन्तु, व-अलयका तवक्कालतू, व- अला रिज़क़िका अफतरतू’ | ‘Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa ‘alayka tawakkaltu wa ‘ala rizqika aftartu’ | ऐ अल्लाह! मैंने तेरी रज़ा के लिए रोज़ा रखा और तेरे ही कहने पर रोज़ा खोल रहा/रही हूं। |
रोज़ा रखने और खोलने का सही तरीका
- रोज़ा रखने के लिए फज्र की अज़ान से पहले सहरी खानी चाहिए। सहरी खत्म होने के बाद कुछ भी खाना या पीना मना होता है।
- रोज़ा खोलने के लिए सूरज डूबने के बाद मगरिब की अज़ान के साथ रोज़ा खोला जाता है। इफ्तार खजूर और पानी से करना सुन्नत माना जाता है।
- इफ्तार के तुरंत बाद मगरिब की नमाज़ अदा की जाती है।
निष्कर्ष
रमज़ान का महीना अल्लाह की इबादत और बरकतों का समय होता है। रोज़ा रखने और खोलने की दुआएं हमें रोज़ा रखने के सही तरीके से जोड़ती हैं और हमारी इबादत को मुकम्मल बनाती हैं। उम्मीद है कि ये दुआएं आपके लिए मददगार साबित होंगी। अल्लाह सबकी दुआएं कबूल करे। आमीन!